
कुलोत्तुंग प्रथम: चोल साम्राज्य का महान शासक
कुलोत्तुंग चोल प्रथम, जो 1070 से 1122 ईस्वी तक शासन करते थे, दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य के एक प्रमुख शासक के रूप में जाने जाते हैं। उनका जन्म वेंगी के चालुक्य नरेश राजराज नरेंद्र के घर हुआ था। कुलोत्तुंग का नाम इतिहास में वीरराजेंद्र के दामाद के रूप में भी प्रसिद्ध है।
शासनकाल की विशेषताएँ
कुलोत्तुंग का शासनकाल अद्भुत सफलता और समृद्धि का प्रतीक था। उनकी नीति यह थी कि अनावश्यक युद्धों से बचा जाए। इस दृष्टिकोण के कारण, उन्होंने श्रीलंका को छोड़कर चोल साम्राज्य के सभी प्रदेशों को 1115 ईस्वी तक अपने अधीन रखा।
युद्ध और संघर्ष
हालांकि, कुलोत्तुंग को अपने शासन के अंतिम दिनों में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्हें कल्याणी के चालुक्य नरेश विक्रमादित्य से निरंतर संघर्ष करना पड़ा, जिससे चोल राज्य की स्थिति काफी दयनीय हो गई। इस संघर्ष के कारण, चोल साम्राज्य तमिल देश और तेलुगु के कुछ भागों तक ही सीमित रह गया।
कुलोत्तुंग की विरासत
कुलोत्तुंग प्रथम की गणना चोल के महान नरेशों में की जाती है। उनके शासनकाल ने चोल साम्राज्य के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया। उनके द्वारा स्थापित नीतियों और प्रशासनिक सुधारों ने साम्राज्य को एक नई दिशा दी।
निष्कर्ष
कुलोत्तुंग प्रथम का शासनकाल एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो हमें यह सिखाता है कि कैसे समझदारी और रणनीति के माध्यम से एक साम्राज्य को स्थिरता और समृद्धि की ओर ले जाया जा सकता है। उनकी विरासत आज भी हमें प्रेरित करती है।